
नई दिल्ली। दिल्ली में होने जा रहे दूसरे Global Summit on Traditional Medicine में इस बार पूरा एक विशेष सत्र अश्वगंधा पर रखा गया है। दरअसल अमेरिका से लेकर चीन तक इस दवा की बड़ी मांग है और भारत से इस औषधि का सबसे ज्यादा निर्यात हो रहा है, ऐसे में मेडिसिन इंडस्ट्री की एक बड़ी लॉबी इस दवा के साइड इफैक्ट्स के बारे में गलत अफवाहें फैला रही है, ताकि इस औषधि की बिक्री को कम किया जा सके और इससे होने वाले फायदों के कारण कुछ विशेष मेडिसिन की बिक्री कम होने की आशंका को कम किया जा सके।
इस बारे में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा दुनियाभर के हर्बल प्लांट्स में अश्वगंधा का विशेष महत्व है, इसलिए यह औषधि कुछ लोगों के लिए चिंता की बात है। इसलिए विशेष चर्चा इस सम्मेलन में रखी गई है, जिसमें अमेरिका की मिसिसिप्पी यूनिवर्सिटी यहां पर अश्वगंधा की सेफ्टी को लेकर एक विशेष सत्र करने जा रहे हैं। दुनियाभर के बहुत सारे विशेषज्ञ अश्वगंधा के इस्तेमाल का समर्थन करते हैं। चुंकि अश्वगंधा भारत की औषधि है, इसलिए हमने WHO को कहा था कि इस औषधि पर एक विशेष सत्र हो, उन्होंने इसको मानते हुए इस औषधि पर एक “विशेष सत्र” रखा है।
अश्वगंधा पर वैज्ञानिक प्रमाण और रिसर्च बढ़ी है, इन अध्ययनों में अश्वगंधा के फायदे दिखाए गए हैं, जैसे तनाव कम करना, नींद सुधारना, शारीरिक – मानसिक स्वास्थ्य, आदि। साथ ही इसको राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय पहचान हासिल हो रही है। भारत सरकार (और इसकी पारंपरिक चिकित्सा नीतियाँ) अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों को विश्व स्तर पर प्रमोट करना चाह रही है। इसी वजह से दिल्ली जैसा केन्द्र सम्मेलन का आयोजन हो रहा है।
एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में अश्वगंधा की ग्लोबल मार्केट वैल्यू लगभग US $ 692.9 मिलियन थी और अनुमान है कि 2024–2034 के बीच यह बाज़ार 9.2% की सालाना वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ेगा, और 2034 तक इसकी वैल्यू US $ 1.9 बिलियन तक पहुँच सकती है। यानी, वैश्विक स्तर पर अश्वगंधा की मांग और इसके व्यावसायिक उपयोग सप्लीमेंट्स, हर्बल मेडिसिन, न्यूट्रास्यूटिकल्स आदि में लगातार बढ़ रही है।
भारत हर्बल/औषधीय पौध-उत्पादों (medicinal plants) का एक प्रमुख निर्यातक है। 2024 में, औषधीय पौधों के कुल निर्यात में, अश्वगंधा का हिस्सा करीब 20% था।