
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों में आयुष मंत्रालय और विभागों के निर्माण के लिए कहा है। केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव ने कहा कि इसके लिए अगर जरुरत पड़ी तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से बात भी करेंगे। ताकि राज्यों में आयुष को लेकर काम तेज़ी से बढ़े।
दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में दो दिन की बैठक के शुरु में ही केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री ने कहा कि राज्यों में अस्पताल, डॉक्टर्स, सपोर्टिव स्टाफ और बेहतर दवाओं को लेकर आयुष मंत्रालय दो दिन की चर्चा करके इसपर पॉलिसी तैयार की जा रही है। इस बैठक में राज्यों के प्रतिनिधि भी हिस्सा ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राज्यों में एक आयुष का ढांचा तैयार होना चाहिए, इस विषय को वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से बात करके राज्यों के प्रमुखों के साथ इस बारे में बात करने की कोशिश भी की जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्यों को भी आयुष के लिए अपना वित्तीय प्रावधान बढ़ाना चाहिए।
इस बैठक में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी के पॉल ने कहा कि हमें 2047 तक विकसित भारत बनाना है जोकि बिना स्वास्थ्य के संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए बहुत ही जरुरी है कि देश में सभी का स्वास्थ्य बेहतर हो। राज्यों को चाहिए कि वो आयुष के बढ़ावे के लिए नई नई नीतियां बनाएं।
आयुष के पैकेजों को चिकित्सा में शामिल कराना है। हमने आयुष के डाक्टर्स को नौकरियां देने की तरफ भी काम करना है। आयुष के अस्पतालों को निर्माण जल्द से जल्द पूरा करना जरुरी है। देश में बहुत सारे राज्यों में आयुष के अस्पताल अधर में ही पड़े हुए हैं। भारत में आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) चिकित्सा पद्धतियाँ लंबे समय से स्वास्थ्य संरक्षण और रोग निवारण का प्रमुख आधार रही हैं। वर्तमान समय में जब संपूर्ण और समग्र स्वास्थ्य सेवाओं की मांग बढ़ रही है, तब राज्यों में आयुष सेक्टर में कैपेसिटी बिल्डिंग (क्षमता निर्माण) अत्यंत आवश्यक हो गई है।
उन्होंने कहा कि क्षमता निर्माण का मतलब केवल नए संस्थान खोलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रशिक्षित मानव संसाधन, आधुनिक प्रयोगशालाएँ, रिसर्च सुविधाएँ और गुणवत्ता आधारित सेवाएँ शामिल हैं। राज्य स्तर पर आयुष चिकित्सकों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ तथा स्वास्थ्य प्रबंधकों को उन्नत प्रशिक्षण और सतत शिक्षा (continuous medical education) की आवश्यकता है। इससे वे पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप इस्तेमाल कर सकें।