Yoga : ज्ञान और कारोबार एक साथ नहीं रह सकते । इस सीख को लेकर कई दोहे और श्लोक प्रचलित हैं। बात-बात में लोग कह उठते हैं कि सरस्वती और लक्ष्मी का योग एक साथ नहीं चलता । इनका आपस में बैर है।
एक बात ये भी है कि ज्ञान विग्रह की जबकि व्यापार संग्रह की प्रवृत्ति की तरफ ले जाता है। अलबत्ता एक ऐसे दौर में जब प्रबंधन का दाखिला शिक्षा की मुख्यधारा में हो चुका है, ज्ञान और कारोबार का विरोधाभास भी धुंधला पड़ता गया । रही-सही कसर विज्ञापन और सोशल मीडिया के चलन ने पूरी कर दी | यह बात किसी एक चीज को लेकर अगर समझनी हो तो इसका सबसे अच्छा उदाहरण है योग की दरकार के नाम पर शुरू हुआ कुबेरी कारोबार।
योग एक विद्या है और किसी भी विद्या को सिखाने के लिए एक गुरु की आवयशक्ता होती है। योग का हर आसन हर व्यक्ति के लिए नहीं होता। योग तभी तक उपयोगी है जब वह जीवन का अभ्यास बने। योग को चमत्कार की तरह देखना, योग की मूल भावना के खिलाफ है। यह न तो कोई चमत्कार है और न ही शरीर के साथ किसी तरह का खिलवाड़। इसलिए ‘हॉट’ से लेकर ‘पावर योगा’ तक सब कुछ योग का बाजारू संस्करण है।
दुनियाभर में योग को आडंबर बनाए जाने पर सोशल मीडिया पर एक चुटकुला भी इन दिनों वायरल हो रहा है। एक महिला ब्राजील से हरिद्वार योग सीखने के लिए आई । वहां के आश्रम में एक बड़े स्क्रीन पर लॉस एंजेलिस से कोई गुरु योग सिखा रही थी। उस महिला ने कहा कि मेरे साथ तो यह धोखा हुआ कि ब्राजील से यहां आई और लॉस एंजेलिस के गुरु योग सिखा रहे। तभी उसकी बगल में बैठे योगार्थी ने कहा कि तुम मेरे हाल के बारे में सोचो कि मैं तो लॉस एंजेलिस से ही आया हूं।
यह चुटकुला भारत में योग के कारोबार पर सटीक बैठता है। अब जब हाथी पर या बाथटब में योग शुरू हो जाए तो चेत जाने का वक्त है कि हम सेहत को लेकर कितने गंभीर हैं और हमारी संस्थाएं कितनी गैरजिम्मेदार। योग को लेकर हाल में एक बड़ी क्रांति आई है। पर उसके साथ अलग-अलग उत्पादों-नुस्खों का बढ़ा कारोबार सेहत के लिए एक खतरे की तरह भी है। टीवी से लेकर हर जगह जिस तरह से योग का अतिरेक दिख रहा है वो कई लोगों को नुकसान पहुंचा चुका है।
दिलचस्प यह है कि सेहत के खिलवाड़ का यह सिलसिला यहीं नहीं खत्म होता। तंत्र-मंत्र से नए-नए तरह के टोटके तक आज टीवी चैनलों पर अपनी खिड़की खोले बैठे हैं। कोई गोलगप्पे खाने के नाम पर असाध्य से असाध्य रोग ठीक कर रहा है तो कोई यही काम अंगूठी या ताबीज बेचकर कर रहा है। दरअसल, बाजार की सनक योग से लेकर सेहत तक कई तरह की भ्रामकता लेकर आ चुकी है। हम इस भ्रम से कैसे बचें, यह किसी और के नहीं बल्कि हमारे विवेक पर निर्भर है।