भारत में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है, शारदीय नवरात्रि धार्मिक आस्थाओं के लिए ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। शारदीय नवरात्रि में जिन नौ देवियों की पूजा हम करते हैं। उन्हीं के नाम पर नौ औषधियां पाई जाती हैं और इन औषधीय को नवदुर्गा का रूप माना गया है।
यह औषधीय वात, पित्त, रक्त और शरीर के विभिन्न अंगों को ठीक करने के लिए रामबाण है। आयुर्वेद में अनेक वनस्पति और खनिजों को देवताओं और देवियों के साथ जोड़ा गया है। इनके इस्तेमाल को भी निश्चित किया गया है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आयुर्वेद विभाग के प्रोफेसर आनंद कुमार चौधरी बताते हैं कि, ऐसा इसलिए है कि रोगी इन दवाओं के इस्तेमाल के समय मन में आस्था रखे। दवाओं में आस्था लोगों को जल्दी ठीक करती है, जिस तरह भगवान शिव शंकर को पारद और मां पार्वती को गंधक के रूप में बताया गया है, इसी तरह नवदुर्गा के स्वरूप में 9 औषधीय बताई जाती है। मार्कंडेय पुराण में के साथ-साथ आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों में इन औषधीयों का जिक्र मिलता है।
हम आपको बताते हैं कि कौन-कौन सी औषधीय मां दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं।
शैलपुत्री यानी हरड, हरदा या हेमवती को देवी शैलपुत्री का स्वरूप माना जाता है, इसके साथ विभिन्न प्रकार मार्कंडेय पुराण में बताए गए हैं। यह औषधि वात रोगों में विशेष लाभ पहुंचाती है।
ब्राह्मी स्मरण शक्ति को बढ़ाने मानसिक परेशानियों को व्याधियों को दूर करने रक्त विकारों का नाश करने के अलावा यह औषधि देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप मानी जाती है। आयुर्वेद में इससे कई अन्य बीमारियां भी ठीक करने के बारे में बताया गया है।
तीसरी औषधि है चंद्रचूड़ या जामसुर जोकि मां चंद्रघंटा के नाम पर यह औषधि जानी जाती है, यह पौधा धनिया जैसा देखने में होता है। यह हृदय रोग मोटापा घटाने में मदद करता है। साथ ही इन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए मां चंद्रघंटा की आराधना का भी विधान है।
चौथी औषधि है जोकि मां कुष्मांडा यानी बथुआ के रूप में जानी जाती है। बथुआ को देवी कुष्मांडा का ही स्वरूप बताया गया है। मानसिक कमजोरी के अलावा यह शारीरिक कमजोरी भी दूर करने में सहायक होती है।
स्कंदमाता के स्वरूप के तौर पर अलसी आयुर्वेद में बताई गई है। वात पित्त का पुरानी व्याधियों को दूर करने के लिए अलसी बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसको माता स्कंदमाता का स्वरूप आयुर्वेद में बताया गया है।
मां कात्यायनी यानी मोरिया गले से संबंधित रोगों के लिए मोरिया इस्तेमाल होता है। इसे देवी कात्यायनी का स्वरूप माना जाता है। यह पित्त, पेट के विकार और गले के रोगों को ठीक करती है।
कालरात्रि यानी नागदोन नामक पौधे से औषधि आध्यात्मिक पक्ष बताए जाते हैं। यह मन और मस्तिष्क स्वीकारो को दूर करने वाली मानी जाती है। इसे देवी के कालरात्रि स्वरूप से जोड़ा गया है।
महागौरी ज्ञानी तुलसी तुलसी जी को देवी मां गौरी का स्वरूप माना जाता है। यह नकारात्मक का नाश करने के साथ-साथ आपके ब्लड को प्यूरिफाई करती है। यह हृदय रोगों में भी फायदेमंद है, रामा यानी सफेद तुलसी, श्यामा यानि काले पत्तों वाली तुलसी।
सिद्ध रात्रि यानी शतावरी बल, बुद्धि, रक्त और पित्त विकारों का नाश करने वाली नारायणी या शतावरी को आयुर्वेद में महा औषधि कहा जाता है। यह देवी सिद्धरात्रि का स्वरूप माना जाता है।