पूरे देश में इन दिनों आयुर्वेद चिकित्सा पर लोगों का भरोसा काफी बढ़ा है। कोरोना के बाद तो पहली बार लोग बीमार होने पर सीधे आयुर्वेद चिकित्सक के पास पहुंच रहे हैं। बदलाव तो काफी हुआ है। लेकिन चुनौतियां भी काफी है। आयुर्वेद चिकित्सा के बारे में ayurvedindian.com के एडिटर दीपक उपाध्याय ने प्रसिद्ध डॉक्टर पीयूष जुनेजा से बात की।
सवाल: डॉ पीयूष, आयुर्वेद के लिए अभी सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
डॉक्टर पीयूष जुनेजा: आयुर्वेद की सबसे बड़ी चुनौती, इसके बारे में लोगों के भ्रम है। इसको लेकर एक पॉजिटिव माहौल बनना चाहिए। दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भ्रम दूर होने चाहिए। 1970-80 में इंटिग्रेशन का समय था। उस समय जो लोग आयुर्वेद पढते थे, वो प्रेक्टिस एलोपैथी की करते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल रही है। अब ज्य़ादातर आयुर्वेद के जो डॉक्टर आ रहे हैं। वो आयुर्वेद से ही इलाज कर रहे हैं। चिकिस्तकों को अपने ही चिकित्सा को अपनाना चाहिए। 2014 में जब मोदी सरकार आई तो मंत्रालय बना इसके बाद लोगों का रुझान भी बढ़ा।
सवाल: क्या होना चाहिए?
डॉक्टर पीयूष जुनेजा: अगर हम भारतीय है और हमें खुद अपने घर की चिकित्सा पद्धति पर ही विश्वास नहीं है तो यह ठीक नहीं है। लेकिन इसको दोबारा नए तरीके से स्थापित करना होगा। इसके लिए रिसर्च करनी चाहिए। ताकि लोगों को इसपर भरोसा बढ़े। इसके साइंस को हमे बताना पड़ेगा। हमें इसमें नए नए अनुसंधान को बढ़ाना चाहिए। रिसर्च में पीछे रहने के सबसे बडा कारण ये रहा कि हमारा माइंडसेट इस तरह से नहीं है इसको बदलना पडेगा। हमें छोटी क्लास से ही अपने बच्चों को आयुर्वेद भी पढ़ाया जाना चाहिए। अभी छात्र फिजिक्स पढ़ते हैं, बॉयोलॉजी पढ़ते हैं, केमिस्ट्री पढ़ते हैं, लेकिन आयुर्वेद कोई नहीं पढ़ता है। अगर बच्चे इसके बाद में पढ़ेंगे तो भारत में सभी लोगों को आयुर्वेद के बारे में पता लगेगा। इसको साइंस की तरह ही बताना चाहिए। ताकि इसके बारे में भ्रम को दूर किया जा सके।
इस बारे में आयुष मंत्री ने भी इस बारे में उल्लेख किया है। भारत सरकार ने भी लगातार इस बारे में काम किया है। नेशनल इंस्टिट्यूट भी बनाया गया है। सरकार पिछले कुछ सालों से काफी तेज़ी से इसमें काम कर रही है। पिछले 6-7 सालों से ये सरकार इस बारे में काम कर रही है। अगर पिछले 70 सालों से काम होता तो बात ही अलग होती।
सवाल: हम कहां फेल हुए, क्यों नहीं बता पाए कि साइंस है?
डॉक्टर पीयूष जुनेजा: बच्चों को आयुर्वेद नहीं पढ़ाया गया, इसी वजह से भारत में साइंसटिस्ट कम्यूनिटी का आयुर्वेद से कनेक्ट नहीं रहा। दरअसल रिसर्च डॉक्टर नहीं करता, बल्कि इसे साइंटिस्ट करता है। लेकिन आयुर्वेद के बारे में साइंटिस्ट ने ज्य़ादा नहीं पढ़ा इसी कारण से आयुर्वेद पर रिसर्च करने वाले साइंटिस्ट की कमी हो जाती है। बीएचयू आदि में तो फिर भी इसके बारे रिसर्च हुई। लेकिन 12वीं तक साइंस पढ़ने वाले बच्चे को आयुर्वेद के बारे में पढ़ाया ही नहीं जा रहा तो उसकी रुचि इस सब्जेक्ट में कैसे जागेगी। इसलिए इस सेक्टर में रिसर्च के लिए जरुरी है।
सवाल: क्या कोरोना ने लोगों का भरोसा आयुर्वेद पर बढ़ाया है?
डॉक्टर पीयूष जुनेजा: कोरोना में लोगों ने ये समझा या जाना। आम तौर पर लोग जब बीमार पड़ते थे तो ही व अस्पताल या डॉक्टर के पास जाते थे। लेकिन इस दौरान लोगों को ये पता चल गया कि जिनकी इम्यूनिटी वीक थी। उन्हें नुकसान हुआ। लेकिन जिनकी इम्यूनिटी अच्छी थी। वो कोरोना से बच पाए। साथ ही ये बात भी साफ हो गई कि आयुर्वेद ही ऐसा विज्ञान है, जोकि प्रिवेंशन की बात करते हैं। कोरोना के समय में लोगों ने काढ़ा पिया, तुलसी गिलोय का इसेतमाल किया तो लोगों को पता लगा कि इनसे इम्यूनिटी स्ट्रांग होती है। वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ रही है। बहुत सारे रोगी आयुर्वेद अस्पतालों में गए और वहां लोगों को नुकसान नहीं हुई हुआ। इन अस्पतालों में मौत बहुत ही कम रही। इसी वजह से लोगों का रुझान अब आयुर्वेद की ओर काफी बढ़ रहा है।