आयुर्वेद के साथ ही देश दुनिया में गोमूत्र और इससे बनी औषधियों (Goumutra medicine) की मांग लगातार बढ़ने लगी है। गोमूत्र के एंटी फंगल और एंटी कैंसर एजेंट के तौर पर अमेरिका में मिले पेटेंट के बाद दुनियाभर में इस आयुर्वेदिक औषधि की मांग काफी मात्रा में बढ़ी है।
आयुर्वेद के मुताबिक, गोमूत्र कुष्ठ रोग, बुखार, पेप्टिक अल्सर, यकृत रोग, किडनी समस्या, अस्थमा, एलर्जी, सोरायसिस, एनीमिया और कैंसर के इलाज में भी इस्तेमाल हो सकता है। मार्डन साइंस के मुताबिक भी वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च से यह सिद्ध किया है कि गोमूत्र मे एंटी कैंसर गुण होते हैं। इसलिए आयुर्वेद डॉक्टर्स और नेचुरोपैथी केंद्रों में कैंसर रोगी बड़ी मात्रा में जाते हैं। दरअसल संसाधित किया हुआ गोमूत्र अधिक प्रभावकारी होता है, यह प्रतिजैविक, रोगाणु रोधक (antiseptic), ज्वरनाशी (antipyretic), कवकरोधी (antifungal) और प्रतिजीवाणु (antibacterial) हो जाता है।
आयुर्वेद के मुताबिक, गोमूत्र एक जैविक टॉनिक के समान है। यह शरीर-प्रणाली में औषधि के तौर पर काम करता है। साथ ही साथ बहुत से वैद्य इसको अन्य औषधियों के साथ, उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए भी देते हैं।
गोमूत्र को मिला था एंटी कैंसर तत्व के तौर पर पेंटेट
गोमूत्र को एंटी कैंसर और एंटी फंगल एजेंट के तौर पर अमेरिका में पेटेंट 2002 में ही मिल गया है। गोमूत्र को एक यूनीक फार्मा कांबिनेशन के तौर पर उस पेटेंट मिला था। लखनऊ और नागपुर के कुछ साइंटिस्ट ने मिलकर अमेरिका में इस पेटेंट के लिए अप्लाई किया था, काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च नई दिल्ली ने इसको आगे बढ़ाया था और बहुत सारे विदेशी जनरल में इसको लेकर रिसर्च छपी थी।
इस पेटेंट के मुताबिक, गोमूत्र में एंटी कैंसर प्रॉपर्टी, एंटीबायोटिक प्रॉपर्टीज और बहुत सारे एजेंट है, जोकि कई सारी बीमारियों में काम आते हैं। आयुर्वेद में गोमूत्र को अमृत समान बताया गया है और इसको भारत में लंबे समय से आयुर्वेद में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। इसको बहुत सारी दवाईयां में इस्तेमाल किया जाता रहा है और सभी स्वदेशी, पतंजलि और आयुर्वैदिक स्टोर्स पर गोमूत्र लंबे समय से बेचा जाता रहा है।