Benifits of Jatamasi:भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों में इस्तेमाल की जाने वाली जटामांसी जड़ी को अब लैब में उगाकर भी चिकित्सा औषधी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। “जर्नल ऑफ ड्रग रिसर्च इन आयुर्वेदा” में हाल ही में एक स्टडी में बताया गया है कि लैब में उगाई गई जटामांसी में भी लगभग सभी तत्व पाए जाते हैं जोकि प्राकृतिक तौर पर उगी हुई जटामांसी में पाई जाती हैं।
यह भी पढ़ें: Ayurveda in Stressful life: दिमाग को शांत रखने के लिए आयुर्वेद में है चमत्कारिक औषधी
जटामांसी भारत में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों यानि आयुर्वेदा, सिद्धा और यूनानी तीनों में ही तनाव, मिर्गी, कमज़ोर याददाश्त, दिमाग से जुड़ी हुई बीमारियों और गंजेपन के साथ साथ दिल संबंधी बीमारियों में भी औषधी के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। यह औषधी ऊंचे पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है और इसी उत्पादन कम और मांग ज्यादा है। इसी वजह से यह औषधिय पौधा अब लगभग लुप्त होने वाला है।
यह भी पढ़ें: Headache part-1: सिरदर्द से परेशान हैं तो आयुर्वेद अपनाएं, सिरदर्द को जड़ से मिटाएं
जनरल ऑफ़ ड्रग्स रिसर्च इन आयुर्वैदिक साइंस में एक रिसर्च पब्लिश की है। इस रिसर्च के मुताबिक ऊंचे पहाड़ों में उगने वाली लुफ्तप्राय जटामांसी को अब लैब में भी उगाया जा सकता है। जंगली पौधों के विकल्प के तौर पर लैब में उगाए गए पौधों में भी लगभग उसी तरह के गुण मिलते हैं, जिस तरह के गुण प्राकृतिक तौर पर पाई जाने वाली जटामांसी में मिलता है। हालांकि लैब में उगाई जाने वाली जटामांसी में फ्लानोडाइल्स और टेरपेनोइड्स नहीं पाए जाते हैं। लैब में उगाए गए जटामांसी में फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जो की औषधि तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।
जटामांसी भारत में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में पाई जाती है। इस प्लांट की जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है, जो की जाटाओं की तरह दिखती है। बहुत जगह पर इसका इस्तेमाल सांप के और बिच्छू के काटते पर औषधी के तौर पर भी किया जाता है। इस रिसर्च में उत्तराखंड इलाके के जटामांसी के पौधों को लैब में उगाया गया। इस लुप्तप्राय औषधि पौधे के कंजर्वेशन के लिए या इसको सुरक्षित रखने के लिए अब सरकारी प्रयास कर रही हैं और जटामांसी के प्रोडक्शन के लिए कई कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं, हालांकि इस प्लांट का औषधीय तौर पर बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने की वजह से इसको सुरक्षित करने के प्रयास अभी तक बहुत ज्यादा असर कारक नहीं रहे हैं। इसी वजह से यह रिसर्च काफी उपयोगी साबित हो सकती है।