Ayurveda is not alternative system: देश में आयुर्वेद का वैकल्पिक चिकित्सा कहने को लेकर आयुर्वेद डॉक्टर्स ने की मुहिम शुरु की थी। डॉक्टर्स के एसोसिएशन आयुर्वेद विज्ञान को वैकल्पिक चिकित्सा की बजाए भारतीय चिकित्सा पद्यति कहने के लिए मुहिम चलाए हुए थे। इसके बाद ही केंद्र सरकार इसी साल नेशनल कमीशन ऑफ इंडियन मेडिसिन बिल लेकर आई थी। जोकि आयुष सेक्टर के लिए एक ऐसा कमीशन है जोकि आयुर्वेद में रिसर्च को बढ़ावा तो देगा ही साथ ही साथ आयुर्वेद के एजुकेशन सिस्टम को भी आगे लेकर जाने की कोशिश करेगा। इस कमीशन में कुल मिलाकर 29 सदस्य होंगे।
दरअसल देश में अंग्रेजी पढ़ाई और एलौपैथी के दबाव में आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान को लगातार दबाकर रखा गया था। 5000 साल पुराने इस विज्ञान को वैकल्पिक चिकित्सा का नाम एक षड़यंत्र के तहत दिया गया था।
डॉक्टर्स लंबे समय से इसे भारतीय चिकित्सा पद्यति का नाम देने के लिए संघर्ष कर रहे थे। आयुर्वेदिक डॉक्टर्स के संगठन नस्या की सचिव डॉ. प्रीति भोसले के मुताबिक ये एक भारतीय चिकित्सा पद्यति है। कोई वैकल्पिक चिकित्सा पद्यति नहीं है। अगर हम ही इसे वैकल्पिक कहेंगे तो लोग इसपर कैसे भरोसा करेंगे। डॉ. प्रीति के मुताबिक दुनिया के किसी भी देश में अपनी सांस्कृतिक चिकित्सा पद्धति को नीचे नहीं रखा जाता। उसे वैकल्पिक चिकित्सा का दर्जा नहीं दिया जाता है। हमारे देश में ऐसा एक षडयंत्र के कारण किया गया। इसका सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ आता है कि अंग्रेजों ने इसे खत्म करने की कोशिश की है। इसकी वजह से हमारी सांस्कृति को भी नुकसान पहुंचा। जैसे जैसे हम वेस्टर्नाइज होते गए और उसे मॉर्डन कल्चर समझते गए। उस तरह से इस दौड़ में हमने अपने कल्चर का नुकसान किया, हमारे ट्रीटमेंट का भी नुकसान हुआ और एजुकेशन का भी नुकसान हो गया। इसी के तहत ही आयुर्वेद को वैकल्पिक चिकित्सा का नाम दे दिया गया। जिसको अब खत्म करने का समय आ गया है।