चावल, दही, राजमा-छोले, उड़द दाल और पनीर-पराठे का शौक लोगों को बीमार कर रहा है। जिन राज्यों में चावल मुख्य भोजन में शामिल है, उन्हें छोड़कर अन्य स्थानों पर चावल की खपत स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है। दही खाना भी अच्छा नहीं है। आयुर्वेद में दही को मथकर तैयार छाछ (मट्ठा) का ही जिक्र है, लेकिन लोग दही-चावल खा रहे हैं।
आयुर्वेद के चिकित्सकों के मुताबिक डायबिटीज से बचने के लिए लोग मिठाई से परहेज करते हैं, लेकिन दही, चावल और आलू का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। बीमारियों से बचने के लिए शास्त्रों में जिन चीजों से परहेज करने की बात कही गई है, उनमें मिठाइयां सबसे आखिर में होती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार पहले नया अनाज खाने का चलन नहीं था। पुराना अनाज खाया जाता था। उसे भी धोते थे। नया अनाज गर्मी पैदा करता है जो बीमारियों का कारण है। पहले मिठाइयां सिर्फ त्योहारों पर ही बनती थीं, लेकिन आज मिठाई रोज खाई जाती है। उन्होंने मिठाइयों के उपयोग को कम करने पर जोर दिया।
इनसे दूर रहें और इनका सेवन करें।
आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि दही को पूरी तरह बंद कर दें। अच्छी तरह से मथहुआ छाछ पीएं। मटर से दूर रहें। यदि कोई व्यक्ति तीन महीने तक लगातार मटर खाता है, तो उसे कंपकंपी रोग हो जाएगा। फूलगोभी, राजमा-छोले, उड़द दाल, पनीर-पराठा छोड़ दें। डॉक्टर के अनुसार, सुबह के समय फल न लें। इससे पेट में गैस बनेगी।
आंवला का मुरब्बा करें प्रयोग
आंवला, गाजर, सेब, मायराबलान मुरब्बा सुबह खाया जा सकता है। आप सादा उपमा भी खा सकते हैं। अगर इडली खाना ही है तो सूजी का सेवन करें। शामक चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का का उपयोग करें। वैद्य के मुताबिक बच्चों को बिस्किट से दूर रखना ही बेहतर है, लेकिन मजबूरी हो तो उन्हें आटे के बिस्किट खिलाएं। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक ऐसी पद्धति है जो स्वास्थ्य की रक्षा करती है।