आयुर्वेद के तहत जीवनचार्य (Lifestyle under Ayurveda) यानी खाना पीना सोना इस पर बहुत ही ध्यान दिया जाता है। स्वस्थ रहने के लिए खाने के समय को लेकर भी आयुर्वेद में बहुत सारे नियम बताए गए हैं। इनमें से एक नियम सूर्यास्त से पहले डिनर यानि खाना खाने का भी है, यानी जो कुछ भी खाना है, वह सूर्यास्त से पहले खा लेना चाहिए और उसके बाद समय पर सो जाना चाहिए। आजकल आयुर्वेद के इस अति महत्वपूर्ण नियम को लेकर लोग बहुत ही लापरवाह है। इसी वजह से अधिकांश लोगों में ऐसी बीमारियां घर कर रही हैं, जिनके लिए उन्हें जीवन भर दवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है।
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इस बारे में आयुर्वेदाचार्या कृतिका उपाध्याय का कहना है कि इन नियमों को बहुत से लोग पुराना और गैर जरुरी बताते हैं, इसलिए ऐसे लोगों को यह बताना जरुरी है कि हज़ारों साल पहले आयुर्वेद ग्रंथों में लिखे यह नियम बहुत ही साइंटिफिक हैं। आयुर्वेद के मुताबिक जठार्गिनी यानी कि वह सिस्टम जो कि शरीर में खाने को पचाने का काम करता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जब यह अग्नि जलती है तो शरीर को भोजन पचाने का इशारा मिल जाता है। जितनी तेज़ यह अग्नि होगी, उतनी ही तेज़ी से भोजन पचेगा। कुछ लोगों में यह तेज़ होती है तो कुछ लोगों में स्लो। इसलिए कुछ लोगों को मेटोबाल्जिम अच्छा होता है।
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आयुर्वेद के मुताबिक, यह अग्नि सूर्य के हिसाब से चलती है यानी जब सूर्य उदय होते हैं तब जेठाग्रणी में अग्नि प्रज्वलित होती है और शाम को वह बहुत मंद पड़ जाती है। अगर हम सूर्यास्त के बाद भोजन करते हैं तो वह बहुत ही देर से पचता है, क्योंकि भोजन पचाने का जो सिस्टम है वह बहुत स्लो हो जाता है। इसकी वजह से शरीर के नेचुरल साइकिल पर असर आता है। अगर हम देर से खाना खाते हैं तो इसकी वजह से खाना देर से पचता है, और बहुत सारा खाना पचता ही नहीं है। जिसकी वजह से हमारे शरीर में विषैले तत्व जमा होने शुरू हो जाते हैं। धीरे धीरे करके यह तत्व शरीर के बहुत सारे महत्वपूर्ण अंगों पर असर डालने लगते हैं। डाइजेशन सिस्टम के स्लो होने की वजह से सबसे पहला असर बीपी और शुगर पर पड़ता है पेनक्रिएटिक एंजाइम्स भी इस स्लो सिस्टम का शिकार होने लगते हैं। धीरे धीरे करके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ जाता है। इसलिए आयुर्वेद का यह नियम स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत ही काम का है।